Special Report: कोरोना वायरस से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत?

Special Report: कोरोना वायरस से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत?

नरजिस हुसैन

कोरोना वायरस अब तक 153 देशों में फैल चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में कुल 1,61,982 लोगों को यह वायरस अपना शिकार बना चुका है और 5,973 लोग अपनी तक इस वजह से अपनी जान गवां चुके हैं। भारत में भी कुल 108 पॉजिटिव मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें 8 नए मामले हैं, दो लोगों की इससे मौत हुई है और 10 लोग अब तक ठीक हो पाएं गए हैं। तो क्या यह माना जाना चाहिए कि देश की स्वास्थ्य सुविधाएं या मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्टर इतना मजबूत है कि वो वायरस के जानलेवा फैलाव को रोक पाने में सक्षम है।

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देश में कोरोना वायरस के आने के बाद कई दिन तो सरकार इसी में उलझी रही कि वायरस यहां कैसे आया बजाए इसके कि इसकी रोकथाम के तरीके पहले से ही तैयार करती। अलग-अलग मेडिकल स्टडीज से यह पता चला कि चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ यह वायरस एक खास तापमान पर तेजी से फैलता है और इस तरह वह फैलकर 153 देशो को अपनी चपेट में ले चुका है। वुहान में 31 दिसबंर को ही हालात काबू से बाहर देखते हुए चीन की सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को खबर की थी जिसके बाद जनवरी में संगठन ने हालात का जायजा लेना शुरू किया। भारत ने जनवरी से मार्च तक इससे निपटने की कोई तैयारी नहीं की थी। कई न्यूज रिपोर्ट ने बताया कि जो लोग विदेशों से आ रहे थे उनकी भी जांच में लापरवाही बरती जा रही थी।

30 जनवरी, 2020 को भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला केरल में जरूर पाया गया लेकिन, इसका फैलाव उत्तर भारत में तेजी से हुआ। 31 जनवरी से सरकार हरकत में आई और उसने कई सारे फैसले लगातार आपा-धापी में लेने शुरू कर दिए।. नेपाल बार्डर से सटे गांवों की पंचायतों को आगाह किया गया और लोगों को जागरुक करने की जिम्मेदारी दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर उनके सुझावों को तेजी से अमल में लाया गया। वायरस जांच की 12 अतिरिक्त लैब फटाफट देश भर में खोली गई। अलग-अलग मंत्रालयों में एडवाइजरी जारी की गई और चीन से आने वाली सभी फ्लाइट्स जो देश के 21 अलग-अलग हवाई अड्डों पर उततती है वहां यात्रियों की जांच के निर्देश दिए गए वगैरह वगैरह लेकिन, शायद तब तक बहुत तो नहीं कुछ देर जरूर हो गई थी। फरवरी और मार्च आते-आते तक भारत के 13 राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों में वायरस फैल चुका था। मामला हाथ से निकलता देख विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने 11 मार्च, 2020 को भारत सहित पूरे विश्व में इसे महामारी घोषित कर दिया।

13 मार्च तक भारत ने खुद को दुनिया से काट लिया और लोगों को घरों में बंद रहने का सुझाव दिया। स्कूल, कॉलेज, युनिवर्सिटी, सिनेमा हॉल, मॉल, किसी भी तरह की सामाजिक और प्रोफेशनल समारोह सब में ना जाने की हिदायत के साथ लोगों को खुद ही क्वारेंटाइन में भेज दिया। सरकार ने वायरस से पुख्ता तरीके से निपटने के लिए Epedemic Diseases Act, 1897 भी लागू कर दिया। दिल्ली, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में यह वायरस जो फैला वहां कोई प्रभावित देश से यात्रा करके नहीं लौटा था हालांकि, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्रा प्रदेश में यह वायरस सीधे यात्रियों के जरिए पहुंचा था।

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मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से वर्ल्ड बैंक के विशेषज्ञों ने एक आंकलन किया जिसमें 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल भारत को स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में बहुत पिछड़ा बताया है। अन्य देशों के मुकाबले भारत में हर 1,000 लोगों पर कम डॉक्टर भी हैं और अस्पतालों में कम पलंग भी। काफी ज्यादा तादाद उन लोगों की भी हैं जो हैंड सैनिटाइजर तो क्या साबुन के बोझ का खर्च भी नहीं उठा सकते जो इस वक्त वायरस से छुटकारा पाने में कारगर है। वर्ल्ड बैंक के 2017 के आंकड़ो के मुताबिक भारत में 50.7 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास न तो साबुन है और ही पानी की बराबर सप्लाई। कुल 40.5 प्रतिशत शहरी आबादी में से सिर्फ 20.2 फीसद शहरी लोग ही इसका खर्च उठा सकते हैं।

भारत में 2011 में 1,000 मरीजों पर 0.7 पलंग थे लेकिन, चीन में इसी साल इतने मरीजों पर 3.8 और इटली में 3.5 पलंग थे। और इसी दौरान हर 1,000 मरीजों पर चीन में 1.8 और इटली में 4.1 डॉक्टर थे। भारत में गरीब लोग बीमारियों से इसलिए मरते हैं क्योंकि इलाज उनकी जेब से बाहर होता है। काफी ज्यादा लोग यहां रोजाना 150 रुपए से भी कम कमाते हैं। वर्ल्ड बैंक के 2016 के आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया में स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करता है। जहां चीन 9.05 प्रतिशत, इटली 13.47 प्रतिशत और ईरान 22.6 प्रतिशत कर्च करता है वहीं करीब 1.5 अरब की आबादी वाला भारत महज 3.14 प्रतिशत ही स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च करता है।

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हालांकि यह बात भी सही है कि जब कोरोना वायरस जैसी महामारी किसी देश में आए तो अमूमन सुविधाएं कम ही लगती हैं लेकिन, सरकार को भी वक्त रहते फौरन एक्शन में आना चाहिए। अब जैसे-जैसे वायरस तेजी से हर शहर और राज्यमें फैलता जा रहा है राजधानी तक में हैंड सैनिटाइजर और मास्क का स्टॉक या तो खत्म हो गया है या फिर ये बड़े मंहगे दामों पर बिक रहे हैं। अस्पतालों में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की सप्लाई में भी कमी आ रही है। चीन पर लगभग हर सामान के लिए निर्भर रहने वाली भारत सरकार स्वास्थ्य सेक्टर का कितना सामान मेक इन इंडिया के तहत पिछले छह सालों में देश में बना पाई ये साफ दिखाई दे रहा है। बहरहाल, लोगों ने खुद को घरों में बंद करना शुरू कर दिया है। अब इतनी बड़ी मदद के बाद देखना है कि सरकार इसके फैलाव को कितनी तेजी से रोक पाएगी।

 

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